खरसांवा-झारखंड के आदिवासी 1 जनवरी को ‘काला दिवस’ के रूप में क्यों मनाते हैं?
खरसांवा-झारखंड के आदिवासी 1 जनवरी को ‘काला दिवस’ के रूप में क्यों मनाते हैं? पृथक झारखंड राज्य की मांग को लेकर जुटे आदिवासियों की शहादत की गाथा सुनाते हुए विशद कुमार लिखते है कि यह एक ऐसा आंदोलन था जिसमें आजादी के मात्र साढ़े चार महीने बाद यानी 1 जनवरी 1948 को ही खरसावां हाट बाजारटांड़ में पुलिस फायरिंग में सैकड़ों आदिवासी मारे गए 1 जनवरी 1948 : खरसावां गोलीकांड विशेष जहां पूरी दुनिया में पहली जनवरी को नए वर्ष के आगमन पर जश्न मनाया जाता है, वहीं झारखंड के खरसावां और कोल्हान के जनजातीय समुदाय के लोग एक जनवरी को काला दिवस और शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। क्योंकि आजादी के मात्र साढ़े चार महीने बाद ही खरसावां हाट बाजारटांड़ में पुलिस फायरिंग में कई आदिवासी मारे गए थे। इस घटना के कारणों की पड़ताल में हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा। 1912 में जब बंगाल से बिहार को अलग किया गया। कुछ वर्षों बाद 1920 में बिहार के पठारी इलाकों के आदिवासियों द्वारा आदिवासी समूहों को मिलाकर छोटानागपुर उन्नति समाज का गठन किया गया। बंदी उरांव एवं यू. एल. लकड़ा के नेतृत्व में गठित उक्त ...